Moral Story Self Independent राकेश जी अपने पुराने स्कूटर पर किक मार रहे थे लेकिन वह स्टार्ट नहीं हो रहा था। इधर ड्युटी पर जाने के लिए देर हो रही थी।

तभी सामने से एक कार तेजी से आकर उनके पास रुकी “पापा कब तक इस खटारा स्कूटर को चलाते रहोगे। चलो मेरे साथ मैं आपको ऑफिस छोड़ देता हूं”

बेटे की बात सुन कर राकेश जी ने अनसुना कर दिया और स्कूटर में किक मारते रहे। उनका बेटा आशीष बड़बड़ाता हुआ चला गया।

दरवाजे के पास खड़ी राकेश जी की पत्नी गायत्री जी ने कहा “जब वो कह रहा था तो चले जाते।”

राकेश जी ने रुमाल निकाल कर माथे का पसीना पोछा और बोले “दुबारा कभी उसकी बक़ील बनने की कोशिश मत करना।”

गायत्री जी चुप हो गईं। राकेश जी का स्कूटर स्टार्ट हो गया उन्होंने एक बार गायत्री जी की ओर देखा और ऑफिस के लिए निकल पड़े।

अभी दो साल पहले ही आशीष की शादी की थी। शादी के बाद से ही आशीष और उसकी पत्नी शैलजा का व्यवहार बदल गया।

दोनों अलग हो गए। वो तो अच्छा हुआ राकेश जी ने बेटे की बात मन कर जॉब नहीं छोड़ी। वरना आज भूखे मरते।

इधर शाम को जब आशीष घर पहुंचा तो शैलजा गुस्से से बोली “हो गई तसल्ली बेइज्जती करा कर। गली में सब देख रहे थे और तुम्हारे पापा जैसे उन्होंने तो सोच ही रखा है तुम्हारी बेइज्जती करने का।”

आशीष को भी गुस्सा आ रहा था वो बोला “तुम ठीक कह रही हो। में कल ही मकान ढूंढता हूं। अब हम यहां नहीं रहेंगे।”

दो दिन बाद ही वो अपने नए घर में शिफ्ट हो गए। गायत्री जी रो रहीं थीं। “अलग था तो क्या हुआ कम से कम सामने तो था।” उन्होंने राकेश जी की ओर देखते हुए कहा।

राकेश जी कुछ नहीं बोले। राकेश जी जैसे जिंदादिल इंसान जिन्होंने अपनी छोटी सी नौकरी में पैसे बचा कर और कर्ज लेकर आशीष को पढ़ाया। जब वह सरकारी ऑफिसर बना तो राकेश जी को लगा जैसे उनका जीवन सफल हो गया, लेकिन बहू बेटे की बेरुखी ने उन्हें तोड़ कर रख दिया। अब वो बिल्कुल शांत रहते हैं। बस उन्हें एक ही चिंता थी कि उनके बाद गायत्री का क्या होगा।

कई महीनों बाद आशीष अपनी मां से मिलने आया। आशीष को देख गायत्री जी बहुत खुश हुईं। आशीष बोला “मम्मी तुम्हारी बहू प्रेगनेंट है। हम चाहते हैं कि आप और पापा हमारे साथ रहो। शैलजा बहुत परेशान है।”

गायत्री जी ने राकेश जी की ओर देखा, लेकिन उन्होंने जाने से साफ इनकार कर दिया। आशीष जानता था पापा कभी नहीं मानेंगे उसने मम्मी से कहा “तुम चलो मम्मी।”

गायत्री जी ने कहा “बेटा तेरे पापा का ध्यान कौन रखेगा। एक कम करो तुम दोनों वापस आ जाओ। शैलजा की देखभाल भी कर लूंगी और इनका भी कोई परेशानी नहीं होगी।”

तभी राकेश जी ने लगभग चिल्लाते हुए कहा “इसका पोर्शन मैने किराए पर दे दिया है। दो दिन बाद वो लोग आ जायेंगे। इसके लिए अब यहां कोई जगह नहीं है।”

पापा की बात सुनकर आशीष निराश हो कर चल गया। गायत्री जी रोने लगी। राकेश जी ने कहा “कल जब इनका मतलब निकल जाएगा तो ये फिर रंग बदल लेंगे। कल अगर मुझे कुछ हो गया तो तू इनकी नौकरानी बन कर रहेगी। इससे अच्छा है अपने सम्मान के साथ उनसे अलग रहें ऊपर किरदार देने तो घर की देखभाल भी होगे और पैसा भी आयेगा। कल में नहीं रहा तो भी तू सम्मान से अपने घर में रहेगी।”

गायत्री जी की आंखों से आंसू बहा रहें थे। ठीक ही तो कह रहे थे राकेश जी एक तरफ उनका बेटा जो बस अपने फायदे के लिए उन्हें ले जा रहा था और एक और उनके पति जो मेरे लिए अपने मरने के बाद भी मुझे कोई तकलीफ न हो इसका इंतजाम कर रहे हैं। उन्होंने आंसू पोंछ कर कहा “आप ठीक कह रहे हैं जो अपना होता तो हमें छोड़ कर कभी नहीं जाता।

आज से नई जिंदगी की शुरुआत करते हैं जहां बस हम दोनों एक दूसरे का साथ निभाएंगे।” यह सुनकर राकेश जी के चेहरे पर कई साल बाद आज मुस्कुराहट आई थी।

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